Thursday, February 12, 2009

पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी


चाह नही, मैं सुरबाला के गहनों में गुथा जाऊँ,
चाह नहीं , प्रेमी माला में बिंध प्यारीं को ललचाऊ ,
ाह नही , सम्राटो के शव पर हे हरी डाला जाऊँ,
चाह नही, देवों के सीर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना फेंक,
मातृभूमि हित शीष चढाने, जिस पथ जावें वीर अनेक





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