Thursday, February 12, 2009

पुष्प की अभिलाषा - माखनलाल चतुर्वेदी


चाह नही, मैं सुरबाला के गहनों में गुथा जाऊँ,
चाह नहीं , प्रेमी माला में बिंध प्यारीं को ललचाऊ ,
ाह नही , सम्राटो के शव पर हे हरी डाला जाऊँ,
चाह नही, देवों के सीर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर देना फेंक,
मातृभूमि हित शीष चढाने, जिस पथ जावें वीर अनेक





That inspirational poem from Dr. Harivanshrai Bacchan

अग्निपथ
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ,
वृक्ष हो भले घने, हो घने, हो बड़े,
एक पत छाँव की मांग मत, मांग मत, मांग मत,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ
तू ना थकेगा कभी, तू ना थमेगा कभी, तू ना मुडेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ
यह महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है,
आश्रू श्वेत रक्त से लथपथ, लथपथ, लथपथ,
अग्निपथ, अग्निपथ, अग्निपथ